कम सितम करने में क़ातिल से नहीं दिल मेरा मेरे पहलू में छुपा बैठा है क़ातिल मेरा वस्ल में यूँ मिरे पहलू को न पहलू से दबा टूट जाए न कहीं आबला-ए-दिल मेरा क़त्ल होने न दिया उस की नज़ाकत ने मुझे रह गया अपना सा मुँह ले के वो क़ातिल मेरा उन को नश्शा है मैं बे-ख़ुद हूँ यही डर है मुझे वो कहीं हाल न पूछें सर-ए-महफ़िल मेरा हिचकियाँ आईं दम-ए-नज़्अ' तो क़ातिल ने कहा अब तो लेता है मज़े मौत के बिस्मिल मेरा वक़्त-ए-आख़िर कोई रोता है लिपट के मुझ से ये इनायत है तो मरना भी है मुश्किल मेरा देखना कोई सर-ए-अर्श से तारा टूटा या हसीं आँख से ज़ालिम की गिरा दिल मेरा दस्त-बस्ता ये कहो हज़रत-ए-'साहिर' से 'वसीम' आप चाहें तो खुले उक़्दा-ए-मुश्किल मेरा