मफ़रूर कभी ख़ुद पर शर्मिंदा नज़र आए मुमकिन है छुपा चेहरा आइंदा नज़र आए वल्लाह शराफ़त क्या अस्लाफ़ ने पाई थी गर्दिश में रहे लेकिन ताबिंदा नज़र आए क़ुर्बां जो हुए हक़ पर कब मौत उन्हें आई सदियों के तसलसुल में वो ज़िंदा नज़र आए ख़ुर्शीद-ए-मुक़द्दर के बुझने से बुझे कब हम ज़ुल्मत में सितारों से रख़्शंदा नज़र आए लगता है जुदा सब से किरदार 'वसीम' उस का वो शहर-ए-मोहब्बत का बाशिंदा नज़र आए