मगर इन आँखों में किस सुब्ह के हवाले थे हमारे नाम के सारे हुरूफ़ काले थे ये ख़ाक-ओ-बाद ये ज़ुलमात-ओ-नूर-ओ-बहर-ओ-बर किताब-ए-जाँ में ये किस ज़ात के हवाले थे है रंग रंग मगर आफ़्ताब आईना जबीन-ए-शब पे तो लिक्खे सवाल काले थे मिसाल-ए-बर्क़ गिरी एक आन तेग़-ए-हवा अभी दरीचों से लोगों ने सर निकाले थे यहाँ जो आज शजर साया-दार है 'मुज़्तर' यहीं पे हम भी कभी बर्ग-ओ-बार वाले थे