मग़रूरी में किस को किस का ध्यान रहा दरिया भी अपने को सागर मान रहा जब टूटा था थोड़े दिन बे-जान रहा फिर भी दिल तो दिल है दिल नादान रहा मेरा क़ातिल मेरे अंदर था लेकिन मरते दम तक मैं उस से अंजान रहा दुख ने ही जीवन भर साथ दिया मेरा सुख तो केवल दो दिन का मेहमान रहा वो भी मुझ को दो दिन में ही भूल गया मेरा भी आगे रस्ता आसान रहा