महाज़-ए-नूर से यकसर हटा दिए गए हम मिसाल-ए-शम-ए-सहरी बुझा दिए गए हम सरों की फ़स्ल पे शायद ज़कात वाजिब थी सो इस निसाब से अब के घटा दिए गए हम मकीन-ए-ख़ुल्द हैं हम भी नसब की निस्बत से ज़मीं पे हस्ब-ए-मशिय्यत बसा दिए गए हम विसाल-ओ-हिज्र भी हैं फ़ैसले नसीबों के किसी से बिछड़े किसी से मिला दिए गए हम बदन के बोझ से इक उम्र तक निढाल रहे ज़मीं की गोद में आख़िर सुला दिए गए हम