महक रहा है बदन सारा कैसी ख़ुशबू है ये तेरे लम्स की तासीर है कि जादू है तुम्हारा नर्म-ओ-सुबुक हाथ छू गया था कभी ये कैसी आग है सोज़ाँ हर एक पहलू है है किस क़दर मुतवाज़िन निगाह-ओ-दिल का मिलाप कि जैसे दोनों तरफ़ एक साँ तराज़ू है रवाँ-दवाँ है जुदाई का कर्ब ये कैसा वो मुतमइन न मुझे अपने दिल पे क़ाबू है ज़माना कहता है जिस को हसीन ताज-महल वफ़ा की आँख से टपका हुआ इक आँसू है बहुत हसीन है माहौल-ए-ज़िंदगी 'सादिक़' नज़र के सामने जब से वो आईना-रू है