महकती ज़ुल्फ़ के क़िस्से तो दास्ताँ से गए वो सिलसिले तिरे हमराह दरमियाँ से गए हमारा हश्र भी ऐसा ही है तुझे खो कर सितारे टूट के जैसे कि आसमाँ से गए हवा उड़ा के कहाँ ले गई ख़ुदा जाने मिलेंगे उस से कभी अब तो इस गुमाँ से गए न जाने कौन सी उम्मीद पे मैं जीता हूँ कि मेरे चाहने वाले तो इस जहाँ से गए ये अपनी शूमी-ए-क़िस्मत कि दूर हैं वर्ना न हम वफ़ा से गए हैं न तुम ज़बाँ से गए