माहौल ने डाला है असर और तरह का फल और तरह के हैं शजर और तरह का लर्ज़ीदा मिले वादी-ए-ज़ुल्मात के रहरव आया मिरे हिस्से में सफ़र और तरह का दुश्मन की हर इक चाल से बच आया मैं लेकिन यारों ने दिखाया है हुनर और तरह का हर बार बढ़ा करती है बे-ताबी-ए-दिल और हर बार वो आता है नज़र और तरह का मुश्ताक़ तो पहले भी बहुत थे मगर अब के मजमा है सर-ए-राहगुज़र और तरह का