मह-ए-विसाल तुझे तो ख़बर नहीं होगी कि दिल में तेरी जगह तीरगी मकीं होगी वो मैं नहीं तो कोई और भी नहीं होगा कि जिस के दर्द की आवाज़ नग़मगीं होगी बस इस तलाश में छाना है हल्क़ा-ए-हूराँ कोई तो होगी जो उस की तरह हसीं होगी दिलों की सल्तनतें फ़त्ह कर सकेगी वो कि जिस ज़बान में तासीर-ए-अंग्बीं होगी पलट के शहर में आया तो दम ही घुटने लगा तवक़्क़ो थी कि मिरी जाँ यहीं कहीं होगी मिरी ज़बाँ पे न आएगी दास्तान तिरी ये मेरी आँख तिरे दर्द की अमीं होगी यही रक़ीब से मिल कर लगा मुझे 'अदनान' वो मेरे साथ रहेगी अगर ज़हीं होगी