महफ़िल-ए-ज़ीस्त भी सजी है अभी हैसियत दिल की मरकज़ी है अभी इक तमन्ना बुझी बुझी है अभी एक ख़्वाहिश दबी दबी है अभी और थोड़े मिज़ाज मिल जाएँ ये मुलाक़ात सरसरी है अभी तेरे चेहरे पे मस्लहत रौशन तेरा लहजा भी मख़मली है अभी झूट का फट पड़ेगा ग़ुब्बारा इस में काफ़ी हवा भरी है अभी वो जो मजबूरियों से गूंधी गई वो हँसी मेज़ पर रखी है अभी कुछ तो अंदाज़ा हो गया क़ाएम तज्ज़िया गरचे सरसरी है अभी दौड़ता है रगों में ख़ून 'आकिब' और रवाँ साँसों की नदी है अभी