महफ़िल ख़ुशियाँ शोर-शराबा एक तरफ़ लेकिन आँखों का सन्नाटा एक तरफ़ उस का बस महफ़िल में यूँ ही आ जाना फिर सारी नज़रों का होना एक तरफ़ रोज़ रक़ीबों का दावत पर इठलाना और इन दो आँखों का फ़ाक़ा एक तरफ़ एक तरफ़ है दुनिया की हर मीठी शय पर उस का हँस के शर्माना एक तरफ़ घर तो सारा बे-तरतीब पड़ा था पर बस उस की यादों को रखा एक तरफ़