महफ़िल में एहतियात से लब अपने खोलिए उतरे जो दिल में बात वही बात बोलिए हम दिल-जलों से इस का सबब कुछ न पूछिए जी चाहा मुस्कुरा दिए जी चाहा रो लिए डर था कि सोज़-ए-ग़म से न शो'ले भड़क उठें रोए हैं इस क़दर कि गरेबाँ भिगो लिए औरों से पूछिए न पता ला-मकान का जब ढूँढना ही ठहरा तो दिल में टटोलिए इस्याँ का दाग़ मेरी जबीं से न मिट सका दामन पे जो शराब के धब्बे थे धो लिए