मिरे उजड़े चमन में भी कभी या-रब बहार आए ख़िज़ाँ हर बार आई मौसम-ए-गुल एक बार आए चला हूँ मौत आए राह में या कू-ए-यार आए किसी सूरत से दिल की बे-क़रारी को क़रार आए कड़क बिजली की सुनते ही लिपट जाते हैं सीने में गरज ऐ अब्र-ए-बाराँ ऐसा मौक़ा बार बार आए निगाहों में तिरी जो कैफ़ है मय में कहाँ साक़ी अगर तू देख ले दुज़्दीदा नज़रों में ख़ुमार आए तसद्दुक़ दिल को कर दूँ जान को क़ुर्बान कर डालूँ मगर उस बद-गुमाँ को काश मेरा ए'तिबार आए मसीहा बन के मुझ को मौत ने छुटकारा दिलवाया फँसे थे आ के दलदल में बड़ी मुश्किल से पार आए ग़म-ओ-अंदोह से बढ़ कर अज़िय्यत इस की है 'सालिक' न कोई मोनिस-ओ-हमदम न कोई ग़म-गुसार आए