मुद्दतों बा'द वो गलियाँ वो झरोके देखे जिस्म की राख से उठते हुए शो'ले देखे दिल में दर आईं गई साअ'तें ख़ुश्बू बन कर सदियों की नींद से फिर जागते लम्हे देखे रंग बरसाती वही सुब्ह वही भीगती शाम वही एहसास में डूबे हुए साए देखे एक इक मोड़ मिले बिछड़े ख़यालों के हुजूम सूने दरवाज़ों में फिर चाँद से चेहरे देखे एक इक आँख पे लम्हों का फ़ुसूँ तारी है कौन उस वक़्त की दीवार से आगे देखे तह में बस्ते हैं चमकते हुए रंगों के नगर कोई इस घोर अंधेरे में उतर के देखे 'शाम' जब तोड़ लिया उस से था जो भी रिश्ता अपने इज़हार के फिर कितने ही रस्ते देखे