मह-रू न हो और चाँदनी वो रात है किस काम की हो वो भी पर ख़ल्वत न हो ये बात है किस काम की दो बोसे या लग लो गले तब गालियाँ मीठी लगें गर वो नहीं और ये नहीं सलवात है किस काम की जब यार से होवे जुदा एक यार-ए-जानी दोस्तो बाग़-ओ-बहार ओ जाम-ओ-मुल बरसात है किस काम की है नस्ब में आली अगर रखता न हो इल्म-ओ-हुनर इक ढेर से भी है बतर वो ज़ात है किस काम की