मैदाँ भी एक जैसा और घर भी एक जैसा इक साएबाँ फ़लक का सर पर भी एक जैसा दुनिया है ख़ूबसूरत मेरे लिए यहाँ पर साया भी एक जैसा पैकर भी एक जैसा अंदाज़ नफ़रतों का बदला नहीं अभी तक जंगें भी एक जैसी लश्कर भी एक जैसा सहरा की रेत हो या सब्ज़ा हो वादियों का नींदें भी एक जैसी बिस्तर भी एक जैसा ज़ाहिर में मुख़्तलिफ़ हैं लेकिन ब-वक़्त-ए-तूफ़ाँ पानी भी एक जैसा पत्थर भी एक जैसा अपनी जगह है ताज़ा सदियों से मेरा चेहरा अव्वल भी एक जैसा आख़िर भी एक जैसा मेरा वजूद 'शाहिद' शबनम का एक ख़तरा बाहर भी एक जैसा अंदर भी एक जैसा