अब भी दुज़्दीदा निगाह-ए-नाज़ है क्या मिरे रोने में भी कुछ राज़ है बन गए अफ़्साने मेरी आह के ख़ामुशी तेरी कि अब भी राज़ है देखने वाले की आँखें देखिए आप को सूरत पे अपनी नाज़ है हो चुकी नाकामियों की इंतिहा और उल्फ़त का अभी आग़ाज़ है 'मैकश'-ओ-इंकार-ए-बादा हफ़-नज़र लाओ साग़र ये भी इक अंदाज़ है