मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू! तू ही बता दे नाज़ से ईमान-ए-आरज़ू! आँसू निकल रहे हैं तसव्वुर में बन के फूल शादाब हो रहा है गुलिस्तान-ए-आरज़ू! ईमान ओ जाँ निसार तिरी इक निगाह पर तू जान-ए-आरज़ू है तू ईमान-ए-आरज़ू! होने को है तुलूअ सबाह-ए-शब-ए-विसाल बुझने को है चराग़-ए-शबिस्तान-ए-आरज़ू! इक वो कि आरज़ुओं पे जीते हैं उम्र भर इक हम कि हैं अभी से पशीमान-ए-आरज़ू! आँखों से जू-ए-ख़ूँ है रवाँ दिल है दाग़ दाग़ देखे कोई बहार-ए-गुलिस्तान-ए-आरज़ू! दिल में नशात-ए-रफ़्ता की धुँदली सी याद है या शम-ए-वस्ल है तह-ए-दामान-ए-आरज़ू! 'अख़्तर' को ज़िंदगी का भरोसा नहीं रहा जब से लुटा चुके सर-ओ-सामान-ए-आरज़ू!