मैं अंजान था जिन से ऐसे जज़्बों की पहचान हुई 'नूर' बना जो क़ौस-ए-क़ुज़ह तो रंगों की पहचान हुई खोल के आँखें जब भी हक़ीक़त का मैं ने दीदार किया मुझ को दिलासा देने वाले सपनों की पहचान हुई मैं सारे आकाश में घूमा पँख थके तो लौट आया जब आ कर डाली पे बैठा पेड़ों की पहचान हुई इश्क़ में मिल के खींच रहा है देख लकीरें गालों पर दुख और काजल के ना-जाएज़ रिश्तों की पहचान हुई मैं ने अपने रहबर को बस याद किया और मुस्काया मस्तों की टोली में जब भी पीरों से पहचान हुई