जब तक ये घर में क़ैद थी कितना सुकून था अब साथ साथ चलती है तन्हाइयाँ मिरी आह-ओ-फ़ुग़ाँ भी राएगाँ है उन के शोर में दुश्मन बनी हुई है ये शहनाइयाँ मिरी एक आफ़्ताब मतला-ए-दिल पर हुआ तुलूअ' क़ौस-ए-क़ुज़ह में छुपा गई परछाइयाँ मिरी पहरा हटे जो उन का तो मैं खुल के साँस लूँ छोड़ेंगी कब अकेला ये तन्हाइयाँ मिरी हर सुब्ह जागते हुए मैं सोचता हूँ 'नूर' कहती है कुछ न कुछ तो ये अंगड़ाइयाँ मिरी