मैं अपने नक़्श बना लूँ तो फिर निकलते हैं ज़रा वजूद में आ लूँ तो फिर निकलते हैं बहुत उड़ाए है ये ख़ाक चार सू मेरी गुमाँ की ख़ाक उड़ा लूँ तो फिर निकलते हैं मैं अपने कर्ब का एलान करने वाला हूँ मैं खुल के शोर मचा लूँ तो फिर निकलते हैं मुझे तमाम ग़मों से बिछड़ के जाना है उन्हें गले से लगा लूँ तो फिर निकलते हैं इस एक रोग ने छीना है ज़िंदगी का सुकूँ ज़रा ये भूक चुरा लूँ तो फिर निकलते हैं में तर्क-ए-ख़्वाहिश-ए-दुनिया उठाए फिरता हूँ ज़रा ये लाश दबा लूँ तो फिर निकलते हैं जुनूँ की राह पे अब इश्क़ चल पड़ा 'शाहिद' जुनूँ के होश उड़ा लूँ तो फिर निकलते हैं