मैं अपने काम अगर वक़्त पर नहीं करता तो कामयाबी का पर्वत भी सर नहीं करता हसीन ख़्वाब अगर दिल में घर नहीं करता तवील रात से मैं दर-गुज़र नहीं करता सिखा दिया है मुझे ग़म ने ज़िंदगी का हुनर किसी भी हाल में अब आँख तर नहीं करता गिरे ज़मीन पे दस्तार सर के झुकने से मैं हुक्मराँ को सलाम इस क़दर नहीं करता मैं अपने अज़्म की पतवार साथ रखता हूँ मिरे सफ़ीने पे तूफ़ाँ असर नहीं करता ग़ुरूर साथ में चलता है हर घड़ी उस के वो अब अमीर है तन्हा सफ़र नहीं करता दिया उमीद का तू हर घड़ी जलाए रख हर एक रात की क्या रब सहर नहीं करता अजब जवाब था उन का 'दिनेश' सोचेंगे सुना था इश्क़ कोई सोच कर नहीं करता