मैं भी कितना सादा हूँ तुझ को अपना कहता हूँ ख़ुशबू जैसा महका हूँ शायद तेरा लहजा हूँ अरमानों का दरिया हूँ मैं सदियों से प्यासा हूँ तू गुलशन ताबीरों का मैं ख़्वाबों का सहरा हूँ मुझ को सदियाँ मत लिखना मैं तो गुज़रा लम्हा हूँ मैं आलम तहरीरों का सब के चेहरे पढ़ता हूँ मुझ को कैसे पूजोगे मैं कब गूँगा बहरा हूँ