मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल-ए-ख़ाम है क्या तिरा बदन कोई शमशीर-ए-बे-नियाम है क्या मिरी जगह कोई आईना रख लिया होता न जाने तेरे तमाशे में मेरा काम है क्या असीर-ए-ख़ाक मुझे कर के तू निहाल सही निगाह डाल के तो देख ज़ेर-ए-दाम है क्या ये डूबती हुई क्या शय है तेरी आँखों में तिरे लबों पे जो रौशन है उस का नाम है क्या मुझे बता मैं तिरी ख़ाक अब कहाँ रख दूँ कि 'ज़ेब' अर्ज़-ओ-समा में तिरा मक़ाम है क्या