मैं देख ही रहा था कि यक-दम भँवर फिरा घूमा सदफ़ निगाह में उस में गुहर फिरा सीधे सुभाव ज़ीस्त समझना मुहाल है इस काम को भी चाहिए मुझ सा ही सर-फिरा हम तो सदा से बस्ता-ए-यक-तार-ए-चश्म हैं ख़दशा सा तेरी सम्त से है तू अगर फिरा यक-दम किसी की याद में आँखें भर आई थीं इक दिन यूँही ख़याल सू-ए-चशम-ए-तर फिरा 'अख़्तर' ज़र-ए-सुख़न की किसी को तलब नहीं मैं तो इसे उठाए हुए दर-ब-दर फिरा