किस ओर ले चली है हवा-ए-नुमू मुझे मिलता है गाम-गाम इक आशुफ़्ता-रौ मुझे कहना तो और कुछ था दम-ए-गुफ़्तुगू मुझे इक ओर सम्त डाल गए रंग-ओ-बू मुझे दोनों ही दर्द-केश थे दोनों ही बेश थे मैं तुझ को कम समझता रहा और तू मुझे बज़्म-ए-नुमूद-ओ-नाम सजी शोर सा उठा मैं चल दिया कि रास न थी हाओ-हू मुझे 'अख़्तर' बड़ी कड़ी थी मसाफ़त और उस के बाद मुझ पर खुला कि अपनी ही थी जुस्तुजू मुझे