मैं दुनिया की हक़ीक़त जानता हूँ किसे मिलती है शोहरत जानता हूँ मिरी पहचान है शेर-ओ-सुख़न से मैं अपनी क़द्र-ओ-क़ीमत जानता हूँ तेरी यादें हैं शब-बेदारियाँ हैं है आँखों को शिकायत जानता हूँ मैं रुस्वा हो गया हूँ शहर-भर में मगर किस की बदौलत जानता हूँ ग़ज़ल फूलों सी दिल सहराओं जैसा मैं अहल-ए-फ़न की हालत जानता हूँ तड़प कर और तड़पाएगी मुझ को शब-ए-ग़म तेरी फ़ितरत जानता हूँ सहर होने को है ऐसा लगे है मैं सूरज की सियासत जानता हूँ दिया है 'नक़्श' जो ग़म ज़िंदगी ने उसे मैं अपनी दौलत जानता हूँ