मुबारक दोस्तो तुम को तुम्हारी बज़्म-आराई ख़ुदा-हाफ़िज़ मैं अब चलता हूँ सू-ए-दश्त-ए-तन्हाई रविश बदली न गुल महके न नग़्मे हैं न शहनाई बड़ा शोहरा था गुलशन में बहार आई बहार आई ख़ुशा ए'जाज़ उल्फ़त दफ़अ'तन ये कैसी याद आई सर-ए-तूर-ए-तख़य्युल जैसे मौज-ए-बर्क़ लहराई न हरगिज़ शिकवा-ए-बेगानगी करता ज़माने से जो होता आश्ना-ए-लज़्ज़त-ए-ज़ख़्म-ए-शनासाई कोई सर-गश्ता-ए-रस्म-ए-जुनूँ है नारा-ज़न 'अतहर' सर-ए-शहर-ए-ख़मोशाँ कैसी आवाज़-ए-अज़ाँ आई