मैं दुश्मनी हूँ मोहब्बत हूँ अजनबी हूँ मैं यही सुबूत हैं मेरे कि आदमी हूँ मैं बुझा सकेगा न मुझ को तमाम आब-ए-जहाँ मियान-ए-दश्त बहत्तर की तिश्नगी हूँ मैं मिरा ख़याल मिरी सोच है किताब मिरी ख़ुदा-ए-फ़िक्र का भेजा हुआ नबी हूँ मैं निगाह की न ख़िलाफ़-ए-शरीअ'त-ए-अदबी किसी के हुस्न-ए-ग़ज़ल पर कि मुत्तक़ी हूँ मैं मिरे ख़याल से रौशन है कोह-ए-तूर-ए-अदब उड़ें न होश तो देखो वो रौशनी हूँ मैं मुझी से बोलना सीखा है गूँगे हर्फ़ों ने मैं रूह-ए-नुत्क़ हूँ लफ़्ज़ों की ज़िंदगी हूँ मैं लुटा रहा है मज़ामीन-ए-नौ के जो अम्बार ज़माना कहता है 'काज़िम' वही सख़ी हूँ मैं