मैं एक हाथ तिरी मौत से मिला आया तिरे सिरहाने अगरबत्तियाँ जला आया महकते बाग़ सा इक ख़ानदान उजाड़ दिया अजल के हाथ में क्या फूल के सिवा आया तिरा ख़याल न आया सो तेरी फ़ुर्क़त में मैं रो चुका तो मिरे दिल को सब्र सा आया मिसाल-ए-कुंज-ए-क़फ़स कुछ जगह थी तेरे क़रीब मैं अपने नाम की तख़्ती वहाँ लगा आया मकान अपनी जगह से हटा हुआ था 'ज़फ़र' न जाने कौन सा लम्हा गुरेज़-पा आया