मैं गुम हूँ आप अपनी जुस्तुजू में भरे हुए रूप रंग-ओ-बू का ज़वाल की मेरे दास्ताँ है जिसे फ़साना कहें नुमू का तुम्हारी गर जुस्तुजू न करते तो हम जहाँ थे वहीं पे तुम थे हम अपनी मंज़िल से बढ़ गए हैं बुरा हो इस ज़ौक़-ए-जुस्तुजू का मिरी मोहब्बत की इंतिहा थी मिरे तख़य्युल की बुत-तराशी बिखर गई आरज़ू की पूँजी तिलिस्म टूटा जो रंग-ओ-बू का तलब के सहरा का ज़र्रा-ज़र्रा है ख़ंदा-ज़न सई-ए-राएगाँ पर सुला दे अब ऐ नसीम-ए-ग़फ़लत कि थक गया पाँव जुस्तुजू का तिरी तमन्ना न सह सकेगी मलामत-ए-शर्म-ए-ना-रसाई ख़ुद अपने दामन को तू झुका दे कि थाम ले हाथ आरज़ू का बला हुई हम को अपनी जुरअत अगरचे हक़दार भी हमीं थे चुरा के ले आए मय-कदे से जो बार उठने लगा सुबू का तुम्ही कहो क्या ये सच नहीं है कि तुम ने चाहा तो हम ने चाहा हमारा सज्दा तो इक करिश्मा है इल्तिफ़ात-ए-बहाना-जू का लिबास जो ज़िंदगी ने बख़्शा उसे किया हम ने पारा-पारा हमारी दीवानगी को 'रिज़वी' इशारा काफ़ी था एक हू का