मैं हक़ीक़त में कभी ग़ैर पे माइल न हुआ न मिला उस से जो वज्ह-ए-ख़लिश-ए-दिल न हुआ उम्र-भर तेरी तमन्नाएँ मिरे दिल में रहीं दिल मगर तेरी तमन्नाओं के क़ाबिल न हुआ हो गई दर्द ये दरमाँ-तलबी ही या'नी तुम से मिलने से ब-जुज़ रंज के हासिल न हुआ न हो शर्मिंदा जफ़ा कर के मैं क़ुर्बां तेरे ये इनायत भी बहुत है कि तू ग़ाफ़िल न हुआ शम-ए-कुश्ता का वो मंज़र वो विदाअ'-ए-महफ़िल ख़ैर ये गुज़री कि परवाना-ए-महफ़िल न हुआ लोग समझा किए हर रंग में शामिल मुझ को वर्ना 'मैकश' मैं किसी रंग में शामिल न हुआ