मैं हूँ ख़ामोश मगर बोल रहा है मुझ में ऐसा लगता है कोई और छुपा है मुझ में मुझ से दिल्ली की नहीं दिल की कहानी सुनिए शहर तो ये भी कई बार लुटा है मुझ में तुझ को चाहत है वफ़ा की तो मुझे ग़ौर से पढ़ वो किताबों में कहाँ है जो लिखा है मुझ में मुस्कुराता हुआ मक़्तल से गुज़र आया हूँ ज़िंदगी तेरी कोई ख़ास अदा है मुझ में ये अलग बात कि अल्फ़ाज़ हैं मेरे लेकिन सच तो बस ये है कि तेरी ही सदा है मुझ में मेरे शेरों से बिखर सकते हैं उस के गेसू तेरा अंदाज़ भी ऐ बाद-ए-सबा है मुझ में लाख ख़ामोश सही सारी फ़ज़ाएँ 'मंसूर' बोलने वाला मगर बोल रहा है मुझ में