मैं इसी ख़ाक से हूँ घर भी इसी ख़ाक में है मेरी परवाज़ मगर वुसअ'त-ए-अफ़्लाक में है क्या लगाएगा मिरे ताज-ए-जुनूँ की क़ीमत क्या ब-जुज़ संग-ओ-ख़ज़फ़ दामन-ए-इदराक में है अब्र को आग बुझाने से जो बढ़ कर रोके इतनी परवाज़ कहाँ शोला-ए-सफ़्फ़ाक में है चाहिए ही नहीं मुझ को कोई शाहाना लिबास मेरी इज़्ज़त इसी पैराहन-ए-सद-चाक में है सादगी ने मुझे रक्खा न कहीं का वर्ना चाँद तारों का जहाँ भी मिरी इम्लाक में है क़ैद कमरे में रहूँ या किसी मैदाँ में रहूँ ऐसा लगता है मुझे कोई मिरी ताक में है जिस के होने पे नहीं मिलता है दरिया का मिज़ाज इतना पानी तो मिरे दीदा-ए-नमनाक में है अपने दामन से छुड़ाया था कभी तू ने जिसे फिर वही रंग नुमायाँ तिरी पोशाक में है क्या कोई ला'ल-ए-बदख़्शाँ भी छुपा है 'यावर' रौशनी किस लिए इतनी ख़स-ओ-ख़ाशाक में है