मैं जो गुज़रा सलाम करने लगा पेड़ मुझ से कलाम करने लगा देख ऐ नौ-जवान मैं तुझ पर अपनी चाहत तमाम करने लगा क्यूँ किसी शब चराग़ की ख़ातिर अपनी नींदें हराम करने लगा सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा क्यूँ मिरा एहतिराम करने लगा उम्र-ए-यक-रोज़ कम नहीं 'सरवत' क्यूँ तलाश-ए-दवाम करने लगा