ताबीरों से बंद क़बा-ए-ख़्वाब खुले मुझ पर मेरे मुस्तक़बिल के बाब खुले जिस के हाथों बादबान का ज़ोर बँधा उसी हुआ के नाख़ुन से गिर्दाब खुले उस ने जब दरवाज़ा मुझ पर बंद किया मुझ पर उस की महफ़िल के आदाब खुले रही हमेशा गहराई पर मिरी नज़र भेद समुंदर के सब ज़ेर-ए-आब खुले दिल के सिवा वो और कहीं रहता है अगर कोई तो दरवाज़ा दर-ए-मेहराब खुले