मैं जो रूठा तो मनाने आए शायद अब होश ठिकाने आए हो के मजबूर आज तेरे हुज़ूर ग़म की रूदाद सुनाने आए हो तुम्हीं दरपए-आज़ार तो फिर कौन तस्कीन दिलाने आए जब मैं जानूँ कि मिरी तरह कोई यूँ तिरे नाज़ उठाने आए दोस्तों ने भी चुरा लीं नज़रें मुझ पे ऐसे भी ज़माने आए याद-ए-माज़ी है ग़नीमत 'फ़य्याज़' लौट कर किस के ज़माने आए