मैं कहाँ और अर्ज़-ए-हाल कहाँ वो कहाँ और मिरा ख़याल कहाँ मैं सितारा न तुम गुलाब हुए मिल रहे हैं मगर विसाल कहाँ आग सोचूँ तो ख़ाक लिखता हूँ मुत्तफ़िक़ लफ़्ज़ और ख़याल कहाँ है वफ़ा का सिला वफ़ा सच है लेकिन ऐसी कोई मिसाल कहाँ मुझ को पामाल-उम्र करते हुए जा रहे हैं ये माह-ओ-साल कहाँ पूछता हूँ जवाज़-ए-कौन-ओ-मकाँ ले गई जुरअत-ए-सवाल कहाँ 'असदुल्लाह'-ख़ाँ की देन है ये 'शौक़' तुम ऐसे ख़ुश-ख़याल कहाँ