मिरी जाँ जुदाई न होगी तो होगी किसी दिन लड़ाई न होगी तो होगी उन्हें शर्म है और यहाँ शौक़-ए-बेहद अगर हाथा-पाई न होगी तो होगी नहीं इतनी जुरअत कि क़दमों पे गिर्ये कि उन से सफ़ाई न होगी तो होगी ज़रा जज़्बा-ए-दिल मदद कर ख़ुदारा जो उन तक रसाई न होगी तो होगी न कुछ हुस्न ओ ख़ूबी में फ़र्क़ आया होगा ये दौलत लुटाई न होगी तो होगी रिहाई असीर-ए-मोहब्बत को तेरे अगर मौत आई न होगी तो होगी नए ज़ुल्म ईजाद करते रहो तुम जहाँ में दुहाई न होगी तो होगी नहीं बाक ग़ैरों से मिलने में उन को जो दिल में बुराई न होगी तो होगी हर इक बात पर आफ़रीं जब कहें सब तो फिर ख़ुद-सताई न होगी तो होगी मोहब्बत की जो आँख थी आगे तेरी जो तू ने चुराई न होगी तो होगी मोहब्बत का गर खुल गया हाल उन पर तो 'अंजुम' रुखाई न होगी तो होगी