मैं कर्ब-ए-बुत-तराशी-ए-आज़र में क़ैद था शो'ले का क्या क़ुसूर जो पत्थर में क़ैद था जिस की तहों में ख़ुद ही मचलती हैं आँधियाँ मैं ख़्वाहिशों के ऐसे समुंदर में क़ैद था फेंके है मुझ को दूर ये गर्दिश है कितनी तेज़ किन मुश्किलों से ज़ात के मेहवर में क़ैद था आते हैं सारे रास्ते मुड़ कर यहीं 'शकील' ज़िंदाँ मिरा यही था इसी घर में क़ैद था जिस का तरीक़-ए-जंग ही शब-ख़ूँ रहा 'शकील' मैं ऐसे हादसात के लश्कर में क़ैद था