मैं ख़िज़ाँ को बहार करता हूँ जब्र को इख़्तियार करता हूँ मौत की तरह काश बर-हक़ हो जिस का मैं इंतिज़ार करता हूँ अहद-ओ-पैमान पर नहीं लेकिन आप पर ए'तिबार करता हूँ जो करे याद दुश्मनी में भी ऐसे दुश्मन को प्यार करता हूँ अपने ज़र्रात को ख़यालों के गौहर-ए-आब-दार करता हूँ दिल-नशीं मुख़्तसर सलीस आसाँ शाएरी बा-वक़ार करता हूँ