मैं ख़ुद साक़ी हूँ अपना मेरे पहलू में है पैमाना वो पैमाना कि ख़ुद मीना भी है और ख़ुद ही मय-ख़ाना अगर शम-ए-हक़ीक़त की ज़िया-बारी नहीं हर-सू तख़य्युल को कहाँ से आ गए आदाब-ए-परवाना पर-ए-पर्वाज़ बख़्शे मुझ को मेरे इशक़-ओ-मस्ती ने हक़ीक़त से जभी दिलचस्प-तर है मेरा अफ़्साना मक़ाम-ए-हैफ़-ओ-हैरत है कि उस को ही मसल डाला नुमू सिदरा की अपने सीने में रखता था जो दाना वही इस बज़्म-ए-हस्ती से सुरूर-अंदोज़ होते हैं निगाहें जिन की हों बेबाक और अतवार मर्दाना मुझे अहल-ए-नज़र की आँख ही पहचान सकती है कि सूरत तो है रिंदाना मगर सीरत हकीमाना 'अमीं' है दाद के क़ाबिल वसी'-उल-मशरबी मेरी कि फ़र्ज़ानों में फ़रज़ाना हूँ दीवानों में दीवाना