जुनूँ के फ़ैज़ से हासिल है ये कमाल मुझे न आस्तीं का न दामन का है ख़याल मुझे बना हो जब कि मिरा सीना आइना-ख़ाना शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल का हो क्यों मलाल मुझे मिरी बला से कोई लाख हातिम-ए-तै हो कि इब्तिदा से नहीं आदत-ए-सवाल मुझे ये बद-लगाम सही मैं भी कम सवार नहीं ज़माना कर नहीं सकता है पाएमाल मुझे कमाल-ए-इश्क़ कहूँ क्यों न इस तसव्वुर को कि जिस के फ़ैज़ से हो हिज्र भी विसाल मुझे मैं साफ़-गो हूँ कि दिल में नहीं है मैल कोई मैं रास्त-रौ हूँ कि भाती नहीं है चाल मुझे अदब नवाज़ कहा करते हैं ‘अमीन-ए-हज़ीं' मगर अवाम मोहम्मद मसीह पाल मुझे