मैं किसी जवाज़ के हिसार में न था मेरा शौक़ मेरे इख़्तियार में न था दूर नई ताक़तों ने जंग लड़ी थी ख़ौफ़ अभी रूह के जवार में न था सिर्फ़ मिरी ज़ात सोगवार खड़ी थी और कोई नींद के ग़ुबार में न था लहर के क़रीब मिरी प्यास पड़ी थी अब्र कोई शाम के दयार में न था याद तिरी थी कि मिरे दिल में गड़ी थी दर्द मिरा था किसी शुमार में न था