मैं नहीं रोता हूँ अब ये आँख रोती है मुझे रोती है और सर से पाँव तक भिगोती है मुझे बद-दुआ है जाने किस की याद की जो हर घड़ी हर गुज़िश्ता लम्हे से वहशत सी होती है मुझे मुमकिना हद तक मैं अपनी दस्तरस में हूँ मगर पिछले कुछ दिन से कोई शय मुझ में खोती है मुझे मुतमइन था दिन के बिखराव से मैं लेकिन ये रात दाना-दाना फिर अजब ढब से पिरोती है मुझे मैं बहुत मश्शाक़ इक तैराक था लेकिन वो आँख देख अब म'अ-कश्ती-ए-जाँ के डुबोती है मुझे