मैं नहीं था रतजगों में कौन था मेरे सिवा साथ मेरे वहशतों में कौन था मेरे सिवा इक ज़माने में हुआ करता है गौतम एक ही दूसरा फिर जंगलों में कौन था मेरे सिवा हात वो किस के थे जो मेरे गले तक आ गए मेरे जैसा दोस्तों में कौन था मेरे सिवा तुम तो ख़ुद अपनी तजल्ली ही में थे खोए हुए अक्स-दर-अक्स आइनों में कौन था मेरे सिवा किस ने मेरे नाम पर अपनी सियाही फेर दी मुझ से पहले मदरसों में कौन था मेरे सिवा कौन उकसाता रहा था शेर-गोई पर मुझे मौजज़न मेरी रगों में कौन था मेरे सिवा पास आते मौसमों में कौन था महव-ए-ख़िराम दूर होती आहटों में कौन था मेरे सिवा मैं तो लब-बस्ता था फिर वो चीख़ कैसी थी 'मुनीर' रात मेरी ठोकरों में कौन था मेरे सिवा