हासिल किसी से नक़्द-ए-हिमायत न कर सका मैं अपनी सल्तनत पे हुकूमत न कर सका हर रंग में रक़ीब-ए-ज़र-ए-नाम-ओ-नंग हूँ मैं वो हूँ जो किसी से मोहब्बत न कर सका घुलता रहा है मेरी रगों में भी कोई ज़हर लेकिन मैं इस दयार से हिजरत न कर सका पड़ता नहीं किसी के बिछड़ने से कोई फ़र्क़ मैं उस को सच बताने की ज़हमत न कर सका आया जो उस का ज़िक्र तो मैं गुंग रह गया और आइने से उस की शिकायत न कर सका बाक़ी रखी है मेरे लहू ने मता-ए-होश मैं ने वफ़ा तो की थी निहायत न कर सका अब भी शगुफ़्ता नूर से है उस को रब्त-ए-ख़ास वो जो मिरे चराग़ की इज़्ज़त न कर सका हर-चंद उस गुलाब पे तश्बीब खुल गई इस पर भी मैं गुरेज़ की हिम्मत न कर सका 'साजिद' क़फ़स की तीलियों को तोड़ कर भी मैं इस दश्त-ए-बे-कनार में वहशत न कर सका