मैं नज़र से एक अंदाज़-ए-नज़र होता हुआ कौन है दिन रात मुझ में बे-ख़बर होता हुआ खुलता जाता है समुंदर बादबाँ-दर-बादबाँ मैं सफ़र करता हुआ मुझ से सफ़र होता हुआ एक वुसअत आसमाँ-दर-आसमाँ बढ़ती हुई इक परिंदा बाल-ओ-पर में तर-ब-तर होता हुआ एक पहनाई मकाँ से ला-मकाँ होती हुई एक लम्हा मुख़्तसर से मुख़्तसर होता हुआ एक अंगड़ाई से सारे शहर को नींद आ गई ये तमाशा मैं ने देखा बाम पर होता हुआ खींच ली किस ने तनाब-ए-ख़ेमा-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा कौन है इस दश्त-ए-ग़म में बे-हुनर होता हुआ