मैं नशात-ए-दर्द को बार बार पुकारना नहीं चाहता जो गुज़र रही हैं ये साअ'तें ये गुज़ारना नहीं चाहता यही बिखरी बिखरी सी काएनात अभी तो मेरा जहान है अभी अपनी ज़ुल्फ़-ए-ख़याल को मैं सँवारना नहीं चाहता अभी धुँदले धुँदले नुक़ूश में कोई चाँदनी है रवाँ दवाँ अभी चेहरा-ए-पस-ए-ज़ुल्फ़ को मैं उभारना नहीं चाहता अजब उलझनें हैं क़दम क़दम पस-ए-इश्क़ भी सर-ए-अक़्ल भी कोई जीतना नहीं चाहता कोई हारना नहीं चाहता