मुझे उदास भी करते रहे मिरे अंदर जो फूल खिल के बिखरते रहे मिरे अंदर मुझे मिटाती रही मेरी ख़ामुशी अक्सर मिरे ही ख़्वाब बिखरते रहे मिरे अंदर मयस्सर आया न उन को लिबास-ए-सौत-ओ-सदा मिरे ख़याल सँवरते रहे मिरे अंदर अब उन की मार से चेहरा बुझा बुझा है मिरा जो सदमे मुझ पे गुज़रते रहे मिरे अंदर बड़े जतन से जलाए थे कुछ दिए मैं ने जो एक झोंके से डरते रहे मिरे अंदर वो अश्क-ए-दिल की ज़मीनों को कर गए शादाब जो क़तरा क़तरा उतरते रहे मिरे अंदर मिरी नुमू में रुकावट बने रहे 'आमिर' जो वसवसे से उभरते रहे मिरे अन्दर